मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-1) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मॉटरनी का बुद्धु - (भाग-1)

मॉटरनी का बुद्धु.....(भाग-1)

"मॉटर जी खाना लग गया है, आप जल्दी से आ जाओ हम दोनो को बहुत जोरों की भूख लगी है", आवाज सुनकर भूपेंद्र जी ने जल्दी से अपनी किताब बंद की और डायनिंग टेबल पर पहुँच गए, जहाँ उनका इंतजार बेसब्री से हो रहा था। खाने के दौरान तीनों लोग अपनी अपनी बातें बता कह -सुन रहे थे।" मॉटर जी खाना बनाने के लिए अब कुक रख दो, मेरे पेपर आने वाले हैं, खाना बनाने की दिक्कत होगी"! "मुझे पता है बेटा, मैंने बात कर ली है, लीला काकी कल से ही आ जाएगी"!भूपेंद्र जी की बात सुन कर वो बोली," वाहहह... मॉटर जी आपको तो सब पहले से ही पता होता है"। "तुम दोनो का बाप हूँ, पता तो होगा ही"। दोनो भाई बहन खुश हो गए, "हाँ ये तो है, पापा मुझे कल इंटरव्यू के लिए जाना है, आप जल्दी उठा देना 10बजे पहुँचना है", उनके बेटे संभव ने कहा जो कुछ दिन पहले ही अपनी MBA पूरी कर वापिस आया है, नो विदेश जाने से कतरा रहा है अपनी बहन और पापा से प्यार ही इतना ज्यादा करता है कि उनके बिना नहीं रहना चाहता।भूपेंद्र जी के 2 बच्चे हैं ,बड़ा बेटा संभव और उससे 3 साल छोटी सभ्यता जो बॉटनी(ऑनर्स) के फाइनल इयर में है। भूपेंद्र जी सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल हैं। खाना खाने के बाद अपने ही कमरे में चहलकदमी करते हुए दीवार पर लगी तस्वीरों के सामने रूक गए। एक नजर उन्होंने अपनी और अपनी पत्नी संध्या की तस्वीर पर डाली और दूसरे पर उनकी नजर अपने बिस्तर पर शांत लेटी संध्या पर चली गयी।शांत सी लेटी हुई, आँखे बंद पर होठों पर हमेशा वाली मुस्कुराहट को देख कर ही तो जी रहे हैं वो पिछले 5 सालों से। सभी कहते हैं उनके जानने वाले कि संध्या जी में कोई हलचल नहीं होती पर भूपेंद्र जी को ऐसा नहीं लगता, उनका मानना है कि वो उनसे जब बातें करते हैं तो उसके हावभाव बदलते हैं। उनके इसी विश्वास ने संध्या की साँसो की डोर को पकड़ा हुआ है। सभ्यता अपनी माँ की बिल्कुल कॉपी है, वो बचपन से ही अपनी माँ को पापा से मॉटर जी करके बात करती सुनती आई है तो वो भी न जाने कैसे पापा की जगह मॉटर जी ज्यादा कहती है। दोनो बच्चे दिन में से कुछ टाइम अपनी मँ के साथ जरूर बिताते हैं। संध्या जी के लिए सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक एक नर्स रोज आती है, उसके बाद भूपेंद्र जी ही ध्यान रखते हैं। बच्चों के नाना नानी और दादा दादी सब बारी बारी से आते रहते हैं। संभव बिल्कुल अपने पिता की तरह संवेदनशील है वहीं सभ्यता व्यवहारिक पर नरमदिल बिल्कुल अपनी माँ जैसी। " ओ संधु तू बोर नहीं होती क्या , बिस्तर पर लेटे लेटे? अब उठ जा, देख ना तेरा बुद्धु सब संभालते संभालते थक रहा है"! न जाने कितनी ही बातें वो करते रहते हैं अपनी कमरे में आ कर , पर सुनने वाली न जाने सुनती भी है या नहीं, पर भूपेंद्र जी का प्यार कम नहीं हुआ और न ही कोशिश करवा छोड़ते है्। वो सारा दिन अपनी संधु से ऐसे ही बातें करते हैं जैसे वो सुन कर जवाब भी दे रही हो.....खुद बोल कर फिर बीवी की तरफ से सवाल करके जवाब देना उन्हें सुकून देता है तो कोई टोकता भी नहीं। शादी से पहले 4 साल का प्यार था और शादी के बाद 27 साल का साथ जिसमें से पिछले 5 साल ये रिश्ता संध्या जी की धड़कनों के सहारे जी रहा है। भूपेंद्र जी जब भी खाली होते हैं तो बस यादों में खोए रहते हैं। बच्चे भी जान बूझकर एक एक बात कई बार पूछते हैं क्योंकि जब उनकी माँ की बात आती है तो भूपेंद्र जी की आँखो की खोयी चमक वापिस आ जाती है और वो पूरे उत्साह से एक एक शब्द बताते चले जाते हैं। बातें खत्म होते होते तीनों की आँखो से आँसू बह जाते हैं। "मॉटर जी कहाँ खोए हो, चलिए चाय पीजिए", सभ्यता कब कमरे में आयी उन्हें पता ही नहीं चला। "ला दे मॉटरनी की बिटिया", भूपेंद्र जी ने मुस्कराते हुए कहा। " पापा मॉम आपको बुद्धु क्यों कहती थी"? "ये 'थी' क्या होता है बेटा? माँ सामने है, फिर ऐसे कैसे तुमने थी बोला"? "थी" शब्द सुन कर भूपेंद्र जी की आवाज सख्त हुई तो उनकी प्यारी बिटिया डर गयी। "पापा सॉरी, गलती से बोल गयी", बेटी की आँखो में आँसू और उसकी रूँधी आवाज सुन कर भूपेंद्र जी नार्मल हो गए।" तेरी माँ से जब भी मैं पूछता कि तुम मेरे जैसे साधारण परिवार के लड़के से प्यार क्यों करती हो तो वो कहती, मुझे तुमसे प्यार है क्योंकि तुम बुद्धु हो", बात बताते हुए जैसे उन पलो को जी रहे थे वो....एकटक बिस्तर पर लेटी संध्या को देखते जा रहे थे। "अच्छा मॉटर जी मैं जा रही हूँ पढने अपने रूम में आप मॉम से बातें करो", कह कर वो चली गयी पर पीछे भूपेंद्र जी फिर यादों के उन गलियारों में खो गए जहाँ अक्सर वो घूमते रहते हैं। उन्हें फिर से याद आ गया संध्या से पहली मुलाकात का वो दिन जब पहली बार दोनो मिले थे शिमला में.....दोनो लोग कॉलेज की तरफ से गए थे वहां।किसी लड़के को बहुत दौड़ा रही थी वो पीछे डंडा लेकर...बाद में उसे पता चला कि उस लड़के ने उस पर कुछ कमेंट किया था। झाँसी की रानी की तरह उसके पीछे दौड़ती देख वो कितना हैरान हुआ था। वो टाइम ऐसा था जब लड़कियों पर बहुत बंदिशे होती थी जिससे वो डर कर रहतीं थी, पर उसे देख कर लगा नहीं कि वो डरती होगी किसी से। उसके बाद उसने पता करवा लिया था कि कहाँ से आए हुए हैं वो लोग.....फिर अगली मुलाकात भी अचानक से माल रोड पर हो गयी थी, वो शॉपिंग कर रही थी अपनी सहेलियों के साथ। भूपेंद्र ने हिम्मत करके उसे पीछे से "एक्सक्यूज मी" कह ही दिया। उसने भी तपाक से "एक्सयूज्ड" कह पलट कर देखा के वे कुछ पल यही सोचने में बिता दिए कि क्या कहे? अब बोलोगे आप कुछ या देखने को पीछे से आवाज लगायी है, वो अपने हाथ में पकड़े बैग्स को संभाल रही थी। उसकी सहेलियाँ कुछ आगे निकल गयीं थी। " मैंने आपको कल उस लड़के के पीछे भागते देखा तो अच्छा लगा.....आप बहुत बहादुर हैं बिल्कुल शेरनी की तरह", एक ही साँस में वो बोल गया। "'थैंक्यू' बस यही कहना था या फिर आप का इरादा भी पिटने का है"? "नहीं जी मैं ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे मार खाने की नौबत आए वो भी लड़की से", उसने कितनी हड़बडाहट में जवाब दिया था कि जिसे सोच भूपेंद्र जी के चेहरे पर फिर से मुस्कुराहट आ गयी।
स्वरचित एवं मौलिक
क्रमश:
सीमा बी.